
अम्बेडकरनगर
सीएम योगी आदित्य नाथ ने एंटी रोमियो का गठन इस उद्देश्य से किया था कि बहन-बेटियां सुरक्षित रहें लेकिन जिले में लगातार छेड़छाड़ व उससे परेशान युवतियों, छात्राओं द्वारा की जा रही आत्महत्या यह बताने के लिए काफी हैं कि टीम पूरी तरह निष्क्रिय हो चुकी हैं। यह हाल तक है जबकि जिले में एंटी रोमियो की टीमें हैं। छात्राओं एवं महिलाओं की सुरक्षा के साथ ही उन्हें जागरूक करने और आवाज उठाने के लिए थाना स्तर पर एंटी रोमियो टीम का गठन किया गया है। एंटी रोमियो टीम को स्कूल-कालेजों में भी पहुंचकर शासन की ओर से जारी हेल्पलाइन आदि के बारे में जानकारी देकर छात्राओं को जागरूक करना होता है, लेकिन जिले में बढ़ती छेड़छाड़ की घटनाएं यह बता रही हैं कि एंटी रोमियो टीम बस नाम की रह गई है।तमाम ऐसे मामले भी हैं जो लोकलाज के डर के कारण सामने नहीं आ पाते हैं।ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या सचमुच हमें एंटी रोमियो स्क्वायड जैसी टीम की जरूरत है? और अगर जरूरत है, तो उनके कामकाज का तरीका क्या होना चाहिए? क्या मनचलों तक ही यह स्क्वायड सीमित रह पायेगा? आज के बिग इश्यू में हम लड़कियों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए बने एंटी रोमियो स्क्वायड की उपयोगिता की पड़ताल कर रहे हैं.सोचने वाली बात यह है कि कोई पुलिसवाला या कानून का मुहाफिज ये कैसे पता लगायेगा कि किसी लड़के ने लड़की को छेड़ा है? क्या पास से गुजर जाने भर को छेड़ना माना जायेगा? या सिर्फ नजरें मिलाने भर को छेड़खानी करार दिया जायेगा? या फिर ये काम लड़कियों की शिकायत पर होगा? और अगर लड़कियों की शिकायत पर होगा, तो इस बात का जवाब भी दिया जाये कि जब लड़कियां पुलिस स्टेशन जा कर शिकायत करती हैं, तब पुलिस उनकी कितनी मदद करती है?ऐसा लग रहा है कि शहरों में सारे अपराध खत्म हो गये हैं और सिर्फ मनचलों को पकड़ना ही पुलिसवालों का मुख्य काम रह गया है. शहर हो, स्कूल हो या कॉलेज हो. सारा काम छोड़कर पुलिस बस रोमियो को पकड़ने के लिए लगा दी गयी है. मिशन शक्ति के तहत महिला हिंसा को लेकर पुलिस काफी गंभीर होने का दावा कर रही है। हकीकत यही है कि एंटी रोमियो स्क्वायड की टीम निष्क्रिय है। सार्वजनिक स्थान, पार्क, स्कूल, कालेज और कोचिंग संस्थानों के आसपास इस टीम के पुलिसर्किमयों की तैनाती होनी चाहिए, लेकिन दिखाई कहीं नहीं देते हैं। इतना हीं नहीं, चिह्नित स्थानों पर भी पुलिसकर्मी दूर-दूर तक नजर नहीं आते हैं। जबकि जिला उद्यान अधिकारी से वार्ता करने के पश्चात बताया गया कि हमारे यहां कभी-कभी डायल 100 दिखाई पड़ती है और कोई जिम्मेदार अधिकारी नहीं दिखाई पड़ते। चाहे वह महिला थाना हो या कोतवाली अकबरपुर की पुलिस।